देश भर में 10वीं की परीक्षा में फेल होने वाले छात्रों के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. लोकसभा में भारत के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि 1,89,90,809 छात्र कक्षा 10वीं की परीक्षा में शामिल हुए थें, जिनमें से सिर्फ 1,60,34,671 ही छात्र पास हुए और 29,56,138 छात्र परीक्षा में असफल रहे. शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (DoSEL) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष 29 लाख से अधिक छात्र कक्षा 10 की परीक्षा पास करने में असफल रहे हैं.
देशभर के बोर्ड ने बताया छात्रों के फेल होने का आंकड़ा
पिछले चार वर्षों में कक्षा 10वीं की परीक्षा करने में असफल होने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है. यह आंकड़ा 2019 में 1,09,800 था जो साल 2020 में 100812 हो गया. इसके बाद साल 2021 में घटकर 31,196 हुआ लेकिन 2022 में तेजी से बढ़कर 1,17,308 हो गया. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS), असम बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन, बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड (BSEB), छत्तीसगढ़ बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन, गुजरात सेकेंडरी एंड हायर सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड, बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन हरियाणा (HSEB) ), महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड मध्य प्रदेश, माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश आदि कई ऐसे बोर्ड हैं जिन्होंने बड़ी संख्या में ऐसे छात्रों की गिनती बताई है जो 10वीं की परीक्षा में फेल होकर 11वीं में नहीं पहुंच पाए हैं.
छात्रों के फेल होने के हो सकते हैं कई कारण
बच्चों के फेल होने के कई कारण हो सकते हैं. लेकिन इन आंकड़ों से स्कूल की शिक्षा प्रणाली पर भी सवाल उठते हैं. प्रधान का कहना है कि छात्रों का स्कूल ना जाना, स्कूलों में निर्देशों का पालन करने में कठिनाई, पढ़ाई में रुचि की कमी, प्रश्न पत्र की कठिनाई का स्तर, अच्छे और होशियार शिक्षकों की कमी, माता-पिता, शिक्षक, स्कूल आदि से सपोर्ट ना मिलना भी छात्रों के फेल होने का कारण हो सकता है.
छात्रों के स्कूल छोड़ने की संख्या बढ़ी
फेल होने के अलावा कई ऐसे छात्र भी हैं, जिन्होंने स्कूल परीक्षा होने से पहले ही स्कूल छोड़ दिया था. ड्रॉपआउट छात्रों के आंकड़े भी अच्छे खासे हैं. ओडिशा में ड्रॉपआउट दर 39.4 से बढ़कर 49.9 प्रतिशत हो गई है. वहीं, बिहार में यह 22 प्रतिशत तक पहुंच गए है. इसके अलावा गोवा में पहले ड्रॉपआउट करने वाले छात्रों का आंकड़ा 5.3 था जो तेजी से बढ़कर 12.4 तक पहुंच गया है. महाराष्ट्र में छात्रों के स्कूल छोड़ने का दर 18.7 से बढ़कर 20.4 हो गया है.