भारत से जो स्टूडेंट्स अमेरिका पढ़ाई के लिए नहीं जा पाते, आमतौर पर उनका सेकेंड स्टडी डेस्टिनेशन कनाडा ही रहता है। कनाडा में स्टडी के दौरान लगने वाली कम फीस और अन्य सरकारी सुविधाएं इसकी प्रमुख वजह हैं। लेकिन, इस साल एक जनवरी से भारतीय छात्रों के लिए कनाडा में पढ़ना मुश्किल हो गया है। कनाडा ने भारतीय छात्रों के लिए गारंटीड इन्वेस्टमेंट सर्टिफिकेट (GIC) लिमिट के साथ-साथ उनके भारतीय अकाउंट में जमा रखने वाली रकम लगभग दोगुनी कर दी है।
GIC के तहत एक साल तक छात्रों को अपने रहने का खर्च कवर करने की गारंटी देनी होती है। यानी अब कनाडा पढ़ने के लिए जाने वालों को लगभग दोगुना खर्च करना होगा। वहीं, कनाडा ने अपने यहां पहले से रह रहे छात्रों का डिपॉजिट तो नहीं बढ़ाया है, लेकिन बेतहाशा बढ़ता रूम रेंट मुसीबतें बढ़ा रहा है।
पहले वह अतिरिक्त बोझ जान लें, जो कनाडा सरकार ने इंडियन स्टूडेंट्स पर थोपा है। GIC के तहत पहले भारतीय छात्रों को कनाडा के अपने बैंक अकाउंट में 16 लाख रुपये जमा करने होते थे। एक जनवरी, 2024 से यह रकम 25 लाख रुपये कर दी गई है, यानी पहले से 9 लाख रुपये ज़्यादा। इसी तरह से छात्रों को अपने भारतीय बैंक खाते में 20,635 कैनेडियन डॉलर यानी लगभग 12.95 लाख रुपये जमा दिखाने होंगे। इस रकम में वहां की ट्यूशन फीस और रहने-खाने का खर्च शामिल नहीं है। नए आने वाले स्टूडेंट्स की ट्यूशन फीस में भी लगभग दोगुने की बढ़ोतरी हुई है। कनाडा के अलग-अलग शहरों में पढ़ने वाले कुछ भारतीय छात्रों का कहना है कि कनाडा सरकार उनकी ट्यूशन फीस पर जो सब्सिडी देती थी, वो भी कम कर दी है।
मनोज की बात पर मुहर लगाती है पिछले महीने आई अप्लाई बोर्ड की एक रिपोर्ट। इसके मुताबिक 2023 के जुलाई से अक्टूबर तक 1,46,000 इंडियन स्टूडेंट्स ने स्टडी वीजा के लिए अप्लाई किया था। लेकिन, इसी अवधि में 87,000 से भी कम भारतीय छात्रों को कनाडा में स्टडी परमिट मिला। यानी सीधे साठ हजार स्टूडेंट्स कम हो गए। यह संख्या 2022 के मुक़ाबले 41 फ़ीसदी कम है। IRCC यानी इमीग्रेशन, रेफ्यूजीस एंड सिटिजनशिप कनाडा के मुताबिक, 2022 में 3 लाख 63 हज़ार 541 भारतीय छात्रों ने अप्लाई किया था, तो अक्टूबर 2023 तक 2 लाख 61 हज़ार 310 भारतीय छात्रों ने आवेदन किया।
Relationship between Buddhist Guru Dalai Lama and Gaya, Bodh Gaya
यह तो रही कनाडा पढ़ने के लिए जाने वाले उन स्टूडेंट्स की मुसीबतें। बात करें वहां पहले से ही रहने वाले छात्रों की तो उनकी हालत भी लगातार खस्ताहाल ही है। विदेश मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2018 से 2022 के बीच 5,67,607 भारतीय कनाडा पढ़ने गए। मुंबई से कैलगरी पढ़ने गईं सिमरनदीप कौर उन्हीं में से एक हैं। वह कहती हैं, ‘यहां हर चीज़ महंगी होती जा रही है। सबसे तेज़ी से तो खाने-पीने के सामानों की क़ीमत बढ़ी है।’ सिमरनदीप 2020 में कनाडा गई थीं। बताती हैं, ‘तबसे अगर इस साल की तुलना करें तो महीने में सिर्फ खाने का खर्च ही 6000 रुपये से अधिक बढ़ चुका है। तेल से लेकर साबुन तक, सब महंगा हो गया है।’
कनाडा में जो छात्र रह रहे हैं, उनके मुताबिक इससे भी बड़ी मुसीबत यहां लगातार बढ़ रहा किराया है। 2019 में अयोध्या से कैलगरी पढ़ने गए अरिंदम मिश्रा बताते हैं, ‘कैलगरी इसलिए चुना क्योंकि यह कनाडा के सबसे सस्ते शहरों में से एक है। लेकिन अब यह भी महंगा हो गया है।’ जब अरिंदम वहां पहुंचे थे, तब उनके एक कमरे का किराया 400 कनाडाई डॉलर महीने का था, लेकिन अब यह 800 कनाडाई डॉलर हो चुका है। अरिंदम के ही साथ पटना के सार्थक शरण भी दिल्ली में रहकर कनाडा जाने की तैयारी करते थे। उन्होंने टोरंटो में एडमिशन लिया। सार्थक कहते हैं, ‘जब आया था, तब 700 से 800 डॉलर में यहां एक कमरा मिल जाता था। अब तो 1300 कनाडाई डॉलर से शुरुआत है।’
कमोबेश यही हाल वैंकूवर का भी है। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से वैंकूवर पढ़ने गए अनहद जुनेजा बताते हैं, ‘2019 में जब यहां आया था, तब एक कमरे का किराया था 600 से 700 डॉलर। लेकिन, अब तो 1400 डॉलर पर भी कोई जल्दी कमरा किराए पर नहीं उठाता।’ कनाडा में हायर एजुकेशन स्ट्रैटिजी एसोसिएटस के अध्यक्ष एलेक्स अशर ने ईमेल पर भेजे अपने जवाब में बताया, ‘आने वाले दिनों में कनाडा में सबके लिए घर नहीं होंगे। यहां पहले से ही काफी कम घर हैं। ओंटारियो में तो लगभग ख़त्म ही हैं, जहां सबसे तेज़ी से स्टूडेंट्स की बढ़ोतरी हो रही है। स्थानीय लोग भी अब स्टूडेंट्स को एक मुसीबत की तरह देखने लगे हैं।’
कनाडा-भारत के बीच रिश्तों में आई खटास का भी असर पड़ा है। दिल्ली से ओंटारियो पढ़ने गए कुणाल आसरा बताते हैं, ‘शुरू-शुरू में जब ज़्यादा शोर मचा था, तब तक तो सब कुछ शांत था। लेकिन, पिछले दो-तीन महीनों से सब कुछ पहले जैसा नहीं रह गया है। यहां तक कि बस और ट्रेन में सबकी नहीं तो कई लोगों की नज़र बदल चुकी है।’