राम की कथा का जो वर्तमान है, वह है एक दिन की घटना, जहां लगभग हारने की चिंता लिए लौटते हैं। लेकिन, स्मृतियों में बचपन याद आता है। कविता का आरंभ है.. ‘रवि हुआ अस्त’ से और कविता का अंत है..‘होगी जय-जोगी जय’ से।
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने ‘राम की शक्ति पूजा’ शीर्षक कविता में राम को ‘पुरुषोत्तम नवीन’ के रूप में चित्रित किया है। यह (तत्कालीन) इलाहाबाद से निकलने वाले ‘भारत’ दैनिक में 26 अक्टूबर 1936 को प्रकाशित हुई थी। इस कविता में राम के जीवन का एक खंड-चित्र है। सूर्य अस्त हो चुका है, राम और रावण की सेनाएं लौट रही हैं। युद्ध का वह दृश्य जो दिन में दृश्यमान था, अब स्मृति में कौंध रहा है। इसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों छोर पर राम का अनुभव प्रकट होता है।
राम की कथा का जो वर्तमान है, वह है एक दिन की घटना, जहां लगभग हारने की चिंता लिए लौटते हैं। लेकिन, स्मृतियों में बचपन याद आता है। कविता का आरंभ है.. ‘रवि हुआ अस्त’ से और कविता का अंत है..‘होगी जय-जोगी जय’ से। यानी ‘हुआ’ से ‘होगी’ तक प्रसरित है राम के अनुभव की व्यापकता। शिशु राम, किशोर राम और युवा राम सबके अनुभवों का समावेश है इस कविता में।
निराला ने राम को आधुनिक मनुष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। आधुनिक मनुष्य की एक विशेषता है-संशय। निराला लिखते हैं-‘स्थिर राघवेंद्र को हिला रहा फिर-फिर संशय’। राम को संशय है कि रावण जीत न जाए क्योंकि रावण ने शक्ति को अपने पक्ष में कर लिया है या कहें कि शक्ति रावण के साथ हैं। राम चिंता करते हैं-अन्याय जिधर है, उधर शक्ति। शक्ति का अन्याय के पक्ष में होना एक संकट है, एक निर्वैयक्तिक संकट। यह राम या निराला का ही नहीं, व्यापक समाज का अनुभव है।
राम के पक्ष में होती हैं शक्ति
लेकिन, शक्ति को अन्याय के पक्ष में देखकर राम धनुष नहीं फेकते। जाम्बवान जैसे अनुभवसिद्ध बुजुर्ग की सलाह पर ‘शक्ति की मौलिक कल्पना’ करते हैं। राम को बार-बार याद आता है कि सीता की मुक्ति अभी शेष है। कहते हैं, जानकी हाय उद्धार प्रिया का हो न सका…। राम के अंदर और बाहर दोनों जगह संघर्ष और चुनौती है। पहले दिन के युद्ध में राम अपने को असहाय पाते हैं… खो रहा दिशा का ज्ञान।.. लेकिन, नौ दिनों के दृढ़ आराधन के पश्चात अंततः शक्ति राम के पक्ष में होती हैं।
राम के आत्मविश्वासी और संकल्पशील मन का अविजित प्रमाणित होना ही इस कृति का अंतिम कथ्य है। निराला श्रेणीकरण तो नहीं करते, पर यह बताने में सफल रहते हैं कि असली लड़ाई ‘लोहित लोचन’ और ‘राजीव नयन’ के बीच है। यह विरुद्धों का सामंजस्य है। निराला कविता में पहले युद्ध का कर्कश-कठोर दृश्य उपस्थित करते हैं, फिर राम के जीवन का कोमल प्रसंग।
निराला ने राम के माध्यम से आदर्श और यथार्थ के द्वंद को किया रेखांकित
पूर्वदीप्ति शैली में जनक की वाटिका में सीता से प्रथम मिलन… राम को अपने प्रेम का पल भी याद आता है और अपने पराक्रम का भी। युद्ध के मोर्चे पर मां कौशल्या को याद कर ताकत ग्रहण करते हैं…कहती थी माता मुझको सदा राजीव नयन। राम के लीला सहचर हनुमान जब राम के आंखों से ढुलके अश्रुबूंद को देखते हैं तो आकाश निगलने को उद्धत होते हैं। तब, शक्ति मां अंजना का रूप धर तेज नहीं, वात्सल्य की दुहाई देकर समझाती हैं कि भावनात्मक आवेश में आकर क्रांतियां नहीं होतीं।
हनुमान के सामने मां को उपस्थित कर निराला ने आवेश की अनौचित्यता का चित्र उपस्थित किया है। निराला ने राम के माध्यम से आदर्श और यथार्थ के द्वंद्व को भी रेखांकित किया है। राम का युद्ध रावण से था और निराला का संघर्ष भाग्य और समाज की बहुमुखी विषमताओं से था। वास्तव में जीवन के सुख-दुख के सभी रसात्मक अनुभव इस कविता में हैं।
यही कारण है कि छिप कर नहीं, राम प्रत्यक्ष रोते हैं यहां। तुलसी के राम प्रिया वियोग में रोए, किंतु निराला के राम पराजय की संभावना पर रोते हैं। पर, अंततः निराला आशावादी संदेश देते हैं। नयन को कमल का स्थानापन्न बनाकर निराला के राम दैवी विधान पर मनुष्यत्व की विजय का संदेश देते हैं। इस अर्थ में निराला के राम साधक हैं, पूजक नहीं। निराला ने जितनी नए राम की कथा कही है, उतनी ही राम की नई कथा भी कही है।